भारत
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इन्टरनेट और भारत में सूचना का अधिकार
डिज़िटल एम्पोवेर्मेंट फाउनदेशन
ऋतू श्रीवास्तव और ओसामा मंज़र
प्रस्तावना
सूचना का अधिकार हर नागरिक का मौलिक अधिकार है, और इन्टरनेट इस अधिकार को प्राप्त कर सकने का एक सबसे सशक्त माध्यम है. इन्टरनेट को सूचना प्राप्त करने का सबसे प्रजातान्त्रिक माध्यम माना जा सकता है, क्योंकि विचारो को व्यक्त कर सकने की स्वक्षन्द्ता जितना इन्टरनेट के माध्यम से सुलभ है उतना और किसी भी माध्यम से नहीं है. परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि विचारो को व्यक्त करने की स्वतंत्रता नियमन और नियंत्रण से प्रभावित नहीं होती या उससे परे नहीं है.
ट्रांसपेरेनसी इंटरनेशनल के २०१० के आंकड़ो के अनुसार अपने नागरिको को सूचना प्रदान करने के परिपेक्ष्य में शीर्ष के देशों की श्रेणी में शामिल हैं डेनमार्क न्यू ज़ीलैण्ड और सिंगापोर. फिनलैंड विश्व का पहला ऐसा देश बना जिसने अपने नागरिको के लिए इन्टरनेट के सेवाओं के उपभोग को क़ानूनी अधिकार के रूप में २०१० में मान्यता प्रदान कर दी और इसके बाद नेदरलैंड दूसरा ऐसा देश बना जिसने अपने नागरिको को यही सेवाएँ प्रदान की. हालाँकि भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देशों में से है, विरोधाभास यह है कि भारत में ज्यादातर सूचना सरकारी महकमों के पास ही प्रदत्त हैं न कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध.
भारत की कुल आबादी का ७० प्रतिशत ६३८३६५ गावों में रहता है और जिनको २४५५२५ पंचायतो द्वारा शाषित किया जाता है , जो कि देश के सुदुर क्षेत्रों में फैले हुए हैं. परन्तु आधारभूत के अभाव और संसाधनों की अनूपल्भ्दाता के वजह से ग्रामीण क्षेत्र अभी भी सूचना प्राप्त करने में संबल प्राप्त नहीं कर सका है. साथ ही साथ बहुत सारे लोग तो इस बात से अनभिज्ञ भी हैं कि उन्हें सूचना का अधिकार प्राप्त है. २०११ के जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता का स्तर ६४.३२ प्रतिशत है और ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा अभी भी काफी व्यापक है. विडंबन यह है कि भारत में सरकार ने २००४ में शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर दिया थाजिसमे शामिल है मुफ्त में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना पर उसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा का स्तर कम होता नहीं दिख रहा है जो कि स्पष्ट है इस बात से अभी भी भारत में ३५
% लोग अशिक्षित हैं और मात्र १५% विद्यार्थी ही शिक्षा प्राप्त करने के सोपानो में दसवी कक्षा तक पहुँच पाते हैं. ऐसी परिस्थिति में यह और भी आवश्यक हो जाता है कि इस वर्ग को शिक्षा प्रदान करवाने के लिए एक ऐसा माध्यम तलाशा जाए जिसको यह वर्ग सहजता से आत्मसात कर सके.
किसी भी प्रजातांत्रिक समाज के यह मूलभूत आवश्यकता है कि उसके नागरिकों को यह प्राथमिक अधिकार मिले कि वो ऐसी सूचना सहजता से प्राप्त कर सके जिससे उनका सार्वजनिक विकास पारिभाषित होता है तथा जो उनके अस्तित्व को भी दिशा निर्देश प्रदान करे. इसके अलावा एक प्रजातान्त्रिक समाज में नागरिक का यह प्राथमिक अधिकार भी है कि वो सूचना कि मांग कर सके उन प्रशाषनिक निकायों से जिनको जनता द्वारा चुना जाता है उनको सेवाएँ देने के लिए.
इन्ही कारणों से नेशनल कैम्पेन फॉर राईट टू इन्फोर्मेशन, सेव द राईट टू इन्फोर्मेशन और इंडिया टूगेदर जसी आन्दोलन इस बात की वकालत करते रहे हैं कि इन्टरनेट के माध्यम का प्रयोग करके सूचना के अधिकार को प्राप्त कर सकने की प्रक्रिया को मूल अधिकार का दर्जा दिया जाए.
भारत में सूचना के अधिकार का आविर्भाव
हालाँकि भारत की आज़ादी को साठ साल से ज्यादा हो चुके हैं, १९९६ में भारत सर्कार द्वारा सूचना के ऊपर अपने नियंत्रण के अंकुश में ढील देने के प्रक्रिया प्रारंभ की गयी. १९९६ से पूर्व भारत का सरकारी तंत्र १९२३ के ओफिसिअल सेक्रेट एक्ट के भार के अन्दर दबा हुआ था, जिसको अँगरेज़ सरकार ने क्रियान्वित किया था . इस क़ानून की आड़ लेकर शासन तंत्र सरकारी कामकाज से सम्बंधित किसी भी प्रकार की सूचना को आम जनता को प्रदान करने के लिए इक्षुक नहीं था. सूचना के अधिकार को नागरिक के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने का प्रथम प्रयास १९९६ में किया गया था, और इस प्रयास को मूरत रूप प्रदान करनेकी शुरुआत हुई नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल' स राइट टू इन्फोर्मेशन द्वारा १९९६ पर पत्थर को तराश कर मूरत रूप प्राप्त करने में १० साल का सफ़र तय करना पड़ा
" सूचना के अधिकार" आन्दोलन का शैशवकाल १९९० के मजदूर किसान शक्ति संगठन (एम्केसेस) का आन्दोलन था, जिसने व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी आवाज मुखरित की थी. यह आन्दोलन भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक राजस्थान के दूर-दराज के इलाकों में शुरू किया गया था और शुरुआत के पीछे निहित था उद्येश्य न्यूनतम मजदूरी प्रदान करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता का समावेश. इस आन्दोलन की भावना का ही प्रताप था कि उसने पूरे देश भर के नागरिको और प्रशासन को उत्साहित किया कि अपने अपने कार्य क्षेत्रो में इस भावना का संचार करे. एम्केसेस द्वारा की गयी वकालत की परिणति थी एनसीपीआराई, जिसने राष्ट्रीय स्टार पर सूचना के अधिकार के क्रियान्वयन का प्रयास १९९६ से शुरू कर दिया. अंततोगत्वा १९९६ में तत्कालीन शहरी विकार मंत्री श्री राम जेठमलानी ने एक प्रशासनिक अध्यादेश जारी किया जिसके फलस्वरूप नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वो मंत्रालयों के फाईलों का निरीक्षण कर सके और उन निर्णयों की छाया प्रतिलीपियाँ प्राप्त कर सके. दुर्भाग्यवश तत्कालीन कैबिनेट सचिव ने इस प्रयास को अपनी मंजूरी देने से इनकार कर दिया, और इस इंकार के बाद सूचन के अधिकार सम्बंधित आन्दोलन पूरे देश में मुखरित रूप से प्रसारित हो गया.
सूचना कि स्वतंत्रता सम्बंधित पहला बिल(२०००) संसद में २००२ में पेश किया गया. एनसीपी आरआई और एम्केसेस के दीर्घ कालीन आन्दोलन के पश्चात, सूचना का अधिकार क़ानून को अपना मूरत रूप १२ अक्तूबर २००५ में प्राप्त हुआ.
इस क़ानून के द्वारा भारत के संविधान ने गोपनीयता के अधिकार, अपने विचारो को बोलने और उन्हें अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता का प्रावधान किया, पर रेखांकित करने वाली बात यह है कि एक अधिकार दूसरे अधिकार को अभिभूत नहीं कर सकता.
जहाँ तक सूचना और संचार तकनीकी (आई सी टी) के सूचना के अधिकार में समावेश का प्रश्न है, सरकार ने यह प्रावधान किया है:
हर जनाधिकरण इस बात कि कोशिश करेगा कि जनता को संचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा सूचन इतने व्यापक स्तर पर प्रदान करवाए ताकि जनता को सूचना के अधिकार के प्रयोग की जरूरत ही न पड़े, और अगर जरूरत हो भी तो न्यूनतम रूप में . इन्टरनेट चूंकि सूचना प्रदान करने का सबसे लोकतान्त्रिक माध्यम है अतः विभागों को इस बात के लिए प्रयासरत रहना चाहिए की ज्यादा से ज्यादा मात्र में सूचना इन्टरनेट के माध्यम से जनता तक पहुँचाई जा सके.
देश की आज़ादी के बाद सूचना का अधिकार कानून देश में बनाये गए विभिन्न कानूनों में से शायद सबसे प्रभावी कानून है जिसके द्वारा सूचना प्राप्त करने को नागरिक के मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है. इस क़ानून के द्वारा जहाँ एक तरफ नागरिको को सरकार और जनसेवाओं से सूचना प्राप्त करने का रास्ता प्रदान किया है, दूसरी तरफ भारत के नागरिको को यह भी शक्ति प्रदान की है कि वो शासन तंत्र से सम्बंधित किसी भी सूचना को विश्व के किसी भी कोने से इन्टरनेट के माध्यम से प्राप्त कर सकता है.
हालाँकि भारत में विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता है, इसके बावजूद सरकारी सूचनाएं प्राप्त करने में सहजता का अभी तक समावेश नहीं हुआ है, न ही सरकारी कामकाज में वान्क्षनीय पारदर्शिता आई है. इसके अतिरिक्त सूचना प्राप्त करने के तकनीकी संसाधनों का अभाव भी सूचना प्राप्त करने की राह में एक व्यवधान है.
इन परिस्थितियों के मद्देनज़र कुछ लोगो का यह मंतव्य है कि सूचना के अधिकार को प्राप्त करने के लिए इन्टरनेट के प्रयोग को मानवाधिकार के श्रेणी में शामिल किया जाये.
इन्टरनेट का प्रयोग करके सूचना के अधिकार को सुनिश्चित करना
दिसंबर २०१० के अंत तक के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग १० करोड़ लोग इन्टरनेट के विभिन्न सेवाओं का प्रयोग करते हैं ( इनमे से ४ करोड़ लोग इन्टरनेट के सेवाओं का उपभोग मोबाइल फोन के द्वारा करते हैं ) और भारत को विश्व में इन्टरनेट के प्रयोग में तीसरा स्थान प्राप्त करने का गौरव मिला है. इन्टरनेट की पहुँच आम नागरिक के जीवन के हर क्षेत्र में किसी न किसी रूप में पहुँच चुकी है : शिक्षा, ज्ञान प्राप्त करने के साधन, स्वास्थ्य और संदर्भित उदहारण में नागरिकों द्वारा सूचना प्राप्त करने के अधिकार को क्रियान्वित करने के प्रयास के रूप में.
इन्टरनेट की पहुँच द्वारा नागरिको के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन सबसे पहले तब सामने आया जब राजस्थान में किसान, भूमि के मालिक और मजदूरों द्वारा जमीन से सम्बंधित दस्तावेज इन्टरनेट के माध्यम से प्राप्त करने के लिए अपनी आवाज मुखरित की. इन सारे लोगो द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में आन्दोलन चलाया जा रहा था व्याप्त भ्रष्टाचार और दस्तावेजों के रखरखाव की धांधली के विरोध में, जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ गरीबी और सामंत्वादिता विद्यमान है, एक आम बात है. आम जनमानस द्वारा उभरी इस आवाज के प्रतिउत्तर में राजस्थान सरकार ने एक पहल की जिसके द्वारा जमीन से सम्बंधित दस्तावेज प्राप्त करने की प्रक्रिया में सरकार के स्तर से पारदर्शिता और जिम्मेवारी का आविर्भाव हुआ.इस प्रयास के द्वारा अब एक कृषक के लिए यह संभव हो सका कि वो अपने जमीन और राजस्व से सम्बंधित अभिलेख की प्रति इन्टरनेट किओस्क के माध्यम से ऑनलाइन प्राप्त कर सके, एक तय की गयी राशि फीस के रूप में देकर, जिसके लिए उसको अपनी तहसील, गाँव, अपनी खाता संख्या प्रदान करनी होती है . इस परियोजना के द्वारा राजस्थान राज्य सरकार ने प्रदेश के ३२ जिलों के २०२ तहसीलों के ३७९८० गावों के जमाबंदी के कागजात (जिनको दीजीताइस कर दिया गया) आम आदमी के लिए जारी कर दिए. इस प्रयास के द्वारा अप्रैल १९९६ के पहले के जमाबंदी रिकॉर्ड भी सरकार द्वारा जारी कर दिए गए, जिससे जमीन से सम्बंधित ६२००० मामलों का निपटारा संभव हो गया.
राजस्थान सरकार की इस पहले से उत्साहित होकर कर्नाटक राज्य सरकार ने भी १९९९ के मध्य में एक महत्वाकांक्षी योजन प्रारंभ की, जिसको भूमि का नाम दिया गया, और इसका उद्येश्य था जमीन और राजस्व से सम्बंधित सारे दस्तावेजों का डिजीटकरण. भूमि परियोजना ने ६.७ लाख भुस्वमिओं के २० लाख ग्रामीण क्षेत्र के दस्तावेजों का डीजितीकरण कर दिया और यह प्रयास संभव हो सका सरकार के स्वामित्व वाले १७७ इन्टरनेटसंबल किओस्क्स द्वारा. अब किसानो और भूस्वामियों के लिए अपनी जमीन से सम्बंधित सूचना प्राप्त करना काफी सरल हो गया, किसान को सिर्फ प्रदान करती थी सूचना अपने स्वामित्व से सम्बंधित, सिचाई का प्रकार आदि. इस प्रयास के द्वारा किसान को नाना प्रकार की सुविधाएं प्राप्त हो सकी जैसे कि पैदावार से सम्बंधित कर्जे से लेकर कानूनी कार्रवाई कर सकने कि सरलता तथा स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए वजीफा प्राप्त करना इत्यादि.
इस परियोजना के क्रियान्वयन ने देशव्यापी स्टार पर काफी अच्छा प्रभाव डाला और इससे प्रेरित होकर केंद्र सरकार ने देशव्यापी स्टार पर जमीन से सम्बंधित सारे अभिलेखों को डिजीटाईज करने की एक मह्त्वकंशी परियोजना की शुरुआत की. इस परियोजना के क्रियान्वयन में मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, गुजरा और महाराष्ट्र राज्य सरकारें शामिल हुईं. इस पहल के क्रियान्वित होने के पश्चात भूमि मालिक अपनी जमीन के परिसीमन तथा जमीन की मिलकियत से सम्बंधित दस्तावेजो की डिजीटाईज प्रति प्राप्त कर सकते हैं.
इस पहल ने जन्म दिया राष्ट्रस्तरित परियोजना के क्रियान्वयन को जिसके तहत नागरिको को सूचना प्राप्त करने के रास्ते सुलभ करने के प्रयास क्रियान्वित किये गए. २००६ में इस परियोजना को नाम दिया गया कामन सर्विस सेंटर का जिसको २००६ में प्रारंभ किया गया जिसका उद्येश्य था ग्रामीण क्षेत्रों में १००००० ऐसे सी एस सी का स्थापन जिसके द्वारा ग्रामीण क्षत्र के नागरिको के लिए सूचना प्राप्त करने का माँर्ग सरल हो गया तथा विभिन्न इ-सेवाएँ प्राप्त करना भी आसान हो गया.
सूचन के अधिकार को राष्ट्रीय इ-गोवेर्नांस परियोजना में शामिल किया गया है जिसमे इस बात का प्रावधान किया गया है कि इन्टरनेट का प्रयोग इस प्रकार से किया जाए कि " गैर सामरिक क्षेत्रों से सम्बंधित सारी सूचना को आम नागरिक के समक्ष रखा जाये ताकि वो उनको चुनौती दे सके तथा सरकार के कामकाज में सुधर में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सके". इस परियोजना ने सूचना के अधिकार को संबल प्रदान किया है इस बात का प्रावधान करके कि सरकार सभी गैर सामरिक जानकारी को आम जनता के समक्ष यथावत प्रस्तुत करे. सारी सूचना डिजीटाईज्द रूप में उपलब्ध होनी चाहिए क्योंकि कागजों के माध्यम से इतने वृहद् रूप से सूचना प्रदान करवा पाना संभव नहीं है.
आन्ध्र प्रदेश में मनरेगा (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून) का क्रियान्वयन सरकार और आम आदमी के बीच पारदर्शिता स्थापन के प्रयास का एक और सफल उदहारण है. इसके क्रियान्वयन के फलस्वरूप सैकड़ो श्रमिको को सूचना प्राप्त कर सकने की सफलता जिसमे शामिल है निष्पादित कार्य से सम्बंधित सूचना और इसके तहत प्राप्त की जा सकती है सूचना मजदूर द्वारा किये गए काम का विवरण, उस काम के बदले मिली तनख्वाह तथा काम द्वारा बने संसाधन के बारे में. यह सारी सूचना आम नागरिक को इस कार्यक्रम की वेबसाइट द्वारा प्रदान करवाई जाती है. नागरिक को यह सूचना दो तरीके से प्राप्त हो सकती है, या तो इन्टरनेट के माध्यम से या फिर ऐसी संस्थानों द्वारा जो कि समुदाय के लिए सूचना प्राप्त करवाने का काम करते है मोबाइल के द्वारा.
अब इस बात की जागरूकता काफी व्यापक हो गयी है कि सूचना प्राप्त करना नागरिक का एक मौलिक अधिकार है और इस कानून को प्राप्त करने में इन्टरनेट सबसे कारगर हथियार है. बहुत सारे कार्यकर्ताओं ने तो इस प्रयास को व्यापक करने के लिए सोशल नेट्वोर्किंग वेबसाइट्स जैसे कि ट्विटर, फेसबूक का काफी वृहद् पैमाने पर इस्तेमाल करते हुए इस प्रयास को एक नए सोपान पर पहुंचाने का काम किया है.
सोशल नेट्वोर्किंग वेबसाइट्स के प्रयोग द्वारा जन आन्दोलन को पूरे देश भर में प्रसारित कर पाने की क्षमता का सबसे सफल उदाहरण हाल ही में सामने आया जब प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने जन लोक पाल बिल में ओम्बुद्स्मन को और अधिकार प्रदान करवाने के लिए भूख हड़ताल शुरू की थी .
इस विरोध की शुरुआत हुई ५ अप्रैल २०११ को. चार दिनों के अन्दर अन्ना हजारे का आन्दोलन इन्टरनेट पर जंगल में आग की तरह फ़ैल गया, और इसका स्वरुप इतना व्यापक हो गया की गूगल सर्च में अन्ना हजारे को शीर्षस्थ स्थान मिल गया, यानी कि उन चार दिनों में अन्ना हजारे ऐसी शख्शियत बन कर उभरे जिसके बारे में जानकारी पाने के लिए लोगो ने इन्टरनेट को खंगाल सा दिया. यह संभव हो सका प्राथमिक रूप से इस कारण से कि सामाजिक मीडिया वेब साइट्स ने जैसे कि फेसबूक, ट्विट्टर यूट्यूब आदि के द्वारा जिन्होंने देश की सामाजिक सरोकार की संवेदना को आवाज और एक सख्शियत प्रदान की. ७२ साल का यह सामाजिक कार्यकर्ता विश्व प्रसिद्ध शख्सियत बन गया ट्विट्टर पर और हर मिनट पर इस व्यक्ति से सम्बंधित कोई न कोई ट्विट्टर जारी होता था, तथा फसबूक पर अन्ना हजारे के चाहने वालों की संख्या बढ़ कर ७०००० हो गयी थी. पूरे देश से लाखो की संख्या में युवा वर्ग ने इस आन्दोलन में फसबूक और ट्विट्टर के माध्यम से अहिंसात्मक रूप से इस आन्दोलन में अपनी भागेदारी की. फसबूक के पेज जैसे की " महात्मा गाँधी-२" और " भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत" के चाहने वालों की संख्या १४५००० हो गयी. चार दिनों के अन्दर अन्ना हजारे के अहिंसात्मक सामाजिक आन्दोलन का ऐसा असर हुआ की सरकार ने इस आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए अन्ना हजारे की सारी मांगे मान ली.
एक और उदहारण जो सूचना तकनीकी के कारको की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका को रेखांकित करता है वह है सीआईसी की ऑनलाइन परियोजना, सेंट्रल इन्फोरमेंशन कमीशन (सीआईसी )और नेशनल इन्फोरमेंटिक्स सेंटर ( एनआईसी) की एक महत्वकांक्षी योजना जो कि एनईजीपी के तत्वावधान में क्रियान्वित की जा रही है. अब ऑनलाइन शिकायत दर्ज करना बहुत ही सरल हो गया है, तथा ऐसी परिस्थिति में जहाँ मांगी गयी सूचना न प्रदान की गयी हो, उसके विरुद्ध दायर की गयी अपनी अपील की स्थिति के बारे में ऑनलाइन सूचना प्राप्त कर सकते हैं. प्रभावी रूप से, सीआईसी ऑनलाइन ने आईसीटी और सूचना के अधिकार क़ानून २००५ के बीच में संस्थागत रूप से तारतम्य स्थापित करने में अग्रणीय भूमिका निभाई है.
ऊपर संदर्भित उदहारण ने हालाँकि इस बात को रेखांकित किया है कि इन्टरनेट ने सूचना के अधिकार को प्राथमिक मानवीय अधिकार के रूप में स्तापित करने में अग्रणीय भूमिका निभाई है, भारत को असफलताओं से भी कई बार रूबरू होना पड़ा है, चाहे वो आधारभूत की असफलता के कारण हो, या फिर आम नागरिको द्वारा सी एस सी की सुविधाओं का उपयोग करने के प्रति उदासीनता या फिर असमर्थता. सूचना के अधिकार कानून को सफलता पूर्वक क्रियान्वित किया जा सकता है अगर उसका तारतम्य इस प्रकार से स्थापित हो पाए कि केंद्रीय और राज्य सरकार के नौकरशाहों जिसमे राजनैतिक और प्रशासनिक दोनों ही वर्ग शामिल है, की प्रतिबधित्ता परिलक्षित हो इस क़ानून को अपनी मूल भावना के परिपेक्ष्य में लागू करने के बारे में. इसके किये यह नितांत आवश्यक है कि तात्कालिक और वृहद् स्टार पर सूचना के अधिकार कानून के मुख्या पहलुओ के बारे में जानकारी तथा उसको क्रियान्वित करने के लिए वांछनीय सहायता सभी सम्बद्ध पक्षों को सहजता से प्रदान कराई जाये. इस कानून में केंद्र और राज्य सरकारों के दायित्यो का विस्तार से जिक्र किया गया है जिनके द्वारा इस कानून के क्रियान्वयन और उसके अनुप्रवर्तन की प्रक्रिया को सुचारू रूप से लागू किया जा सके.
आवश्यकता है इस क़ानून को पूरे देश भर में समान रूप से लागू करने की. इसमें कोई शक नहीं की अगर यह कानून पूरे देश में लागू हो जाये तो सरकारी महकमो और निकायों में पारदर्शिता का समावेश हो जाएगा, जो कि एक वाचाल लोकतंत्र की आवश्यकता है. जब सरकार के तंत्र की जनता के प्रति जवाबदेही बढ़ जाएगी तो भ्रष्टाचार स्वतः ही नेपथ्य में चला जाएगा. पर यह संभव तभी हो सकेगा जब सरकारी विभाग और निकाय यह सुनिश्चित करें कि आम नागरिक को वांछनीय सूचना किसी भी समय और कही से भी प्राप्त हो सके. परन्तु यह तभी संभव हो सकेगा जब इन्टरनेट की सेवा के उपभोग को मूल अधिकार के रूप में शामिल किया जाए.
कार्यबिंदु
भारत जैसे विकासशील समाज में, आईसीटी विभिन्न विचारधाराओ और मतों के अनुयायिओं को एकसूत्र में बाँधने में एक अहम् भूमिका निभाता है. कुछ कार्यबिन्दू जो इसको और शशक्त बनाएँगे में शामिल हैं:
- सूचना को प्राप्त करने में आने वाली रूकावटो को दूर करने के उद्येश्य से , जरूरत है आईसीटी आधारभूत की सार्वभौमिक रूप से उपलभ्धता बनाने और इन्टरनेट पर सूचना उपलब्ध करवाने की.
- वेब २.० के दौर में जरूरत है ज्ञान प्राप्त करने का एक ऐसा मॉडल बनाने की जो कि उसके वाणिज्यीकरण को नियंत्रित करके रखे और और सूचना और ज्ञान को निर्वाध रूप से प्रचारित प्रसारित होने दे
- पंचायत के दफ्तरों को सूचना के अधिकार सम्बंधित आवेदन प्रस्तुत करने के केंद्र के रूप में विकासित किया जाए या उनको इन्टरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए और उसको पब्लिक सिटिज़न ऑफिस (पीसीओ) का दर्जा दिया जाए जहाँ कि आम नागरिक आरटीआई का आवेदन दे सके. आरटीआई के आवेदन से सम्बंधित शुल्क काल रेट के आधार पर तय की जा सकती है या फिर वह दर जो कि पीसीओ अधिकारी निर्धारित करे.
- जिस देश में साक्षरता का स्तर मात्र ६४ प्रतिशत है , और उनमे से बहुतायत में ऐसे लोग हैं जिनको इन्टरनेट की सेवाए प्रयोग करने के बारे में कोई भी जागरूकता नहीं है, ऐसे अवसर सुलभ होने चाहिए जिसके द्वारा आरटीआई का आवेदन मोबाइल तकनीकी का प्रयोग करके भी प्रस्तुत किया जा सके, ( जैसे कि एसएम्एस के द्वारा).
- आवश्यकता है सरकारी नीतियों, आवेदनों, योजनाओ, घोषणाओ आदि के डिजिटीकरण, सूचीबद्ध करने और एक सिलसिलेवार संग से कलेवर में प्रस्तुत करने की ताकि आम नागरिक सारी सूचनाओ को सहजता से प्राप्त कर सके
- भूमंडलिकरण के इस दौर में एक परिपाटी विकसित हो रही है जिसकी विशेषता है प्रतिबंधित बौद्धिक सम्पदा क़ानून और प्रथाएं , जहाँ तकनीकी का प्रयोग करके बौद्धिक सम्पदा के प्रजातान्त्रिक वितरण पर रोक. इसका विरोध नितांत आवश्यक है.
- सिविल सोसाईटी के लिए यह आवश्यक है कि अधिकारों, प्रजातंत्र , समानता और सामाजिक न्याय को प्राप्त करने के संघर्ष में राजनैतिक परिसीमन को भी इस प्रकार से संदर्भित करे कि लोगो के अधिकार से सम्बंधित अभियान सुचारू रूप से चल सकें.